राह में कई थे अपने ,
हर मोड़ पर इक बिछड़ता रहा
मैं जान न सका |
जिंदगी तेरे लाख हैं रंग
पर इक भी रंग को
मैं पहचान न सका ||
कभी मेले दिखाए हसीन तो,
कहीं बाज़ार था भरा हुआ,
कभी बिक रही थी खुशियाँ तो,
कहीं सपना नीलाम था हुआ;
पर इक भी हिसाब खरीद का
मैं ठीक लगा न सका |
जिंदगी तेरे लाख हैं रंग
पर इक भी रंग को
मैं पहचान न सका ||
कहीं प्यार दिलाया अपनों का,
तो कहीं दोस्त थे खड़े हुए,
कभी दिखाया आशियाँ महबूब का,
तो कहीं मंदिर मिले बने हुए;
पर इक भी किरदार दिया हुआ,
मैं निभा न सका |
जिंदगी तेरे लाख हैं रंग
पर इक भी रंग को
मैं पहचान न सका ||


